शरारती और नटखट परी को मिला सबक
आज में आप सभी को एक ऐसी कहानी बताने जा रहा हु जिसे पढकर आपको एक बहुत ही प्यारा सा सबक मिलेगा तो आप इस कहानी को पढिये और अपने बच्चो को सुनाइए उम्मीद है कहानी पढकर आपको मज़ा आएगा ! यह एक काल्पनिक कहानी है इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है! हिमालय के बीचों बीच एक पहाड़ के चोटी के पास घने जंगलों के बिच, एक रहस्यमयी परियों की दुनिया थी। मनुष्यों के लिए वहाँ पहुँचना असंभव था। पहाड़ी के ठीक निचे वनवासी भाइयों का एक गांव था, जिनमे सन्यासी और तपस्वी भी रहते थे।
उस गांव के तपस्वि लोगो को परियों के दुनिया बारे में पता था। जो सिद्ध महात्मा थे वे समय समय पर परियों के महल में भी जाते थे। परियों की रानी उन महात्माओं को अपने राजदरबार में पुरे मान-सम्मान के साथ उचित स्थान पर बैठाती थी। परियों के महल के ठीक निचे वाले पहाड़ से एक बहुत ही सुन्दर और शीतल जल का झरना निचे की तरफ बहता था। इसी झरने के जल का उपयोग करते थे।
परियों का महल बहुत ही भव्य और सुन्दर था। उस महल के अंदर एक अलग ही दुनिया बस्ती थी। उस महल के अंदर सभी सुख- सुविधा उपस्थित था। महल के अंदर बड़े-बड़े हिमालय को चुनौती देती पहाड़ियाँ थी। साथ ही सप्तसमुद्र के बराबर कई समुद्र मौजूद थे। हर तरफ उड़ते बाग़-बगीचे थे। साथ ही इस महल में बड़े परी से लेकर छोटी परी भी रहती थी।
परियों के रानी की एक बेटी थी जिसका नाम शीतल था, लेकिन अपने नाम के विपरीत वह बहुत शरारती थी। शीतलता वाला कोई गुण उसके अंदर नहीं था। वह हमेशा अपने शरारत से महल में कोई न कोई मुसीबत उत्पन्न करती ही रहती थी।एक बार उसने अपनी शरारत से महल के अंदर की दुनिया में अपने विशेष शक्तियों का उपयोग करके सभी परियों को तितली बना दिया था और दिनभर उनके पीछे-पीछे दौड़ते रही और उनको परेशान करती रही। महारानी के डाँटने पर उसने अपना जादू वापस लिया और सभी तितलियों को वापस परी बना दिया।
महारानी के लाड-प्यार ने शीतल परी को और बिगड़ैल बना दिया था। यदि महारानी परी शुरू से ही अपने बच्चें को प्रेम के साथ-साथ कठिन अनुशासन का पाठ पढ़ाया होता तो आज यह दिन नहीं आता शायद सही कहा गया है की माता- पिता को कुम्हार की भाँति बच्चों को बाहर से सहलाना चाहिए और अंदर से कठोर बन उनको अच्छा शेप देना चाहिए। शीतल परी को अपने जादू का, साथ ही अपने राजकुमारी होने का भी घमंड हो गया था। अपने जादुई शक्ति साथ ही अपने पद का दुरूपयोग कर वो अक्सर अन्य परियों को परेशान करती रहती थी। महारानी की पुत्री होने की वजह से उससे कोई उलझता भी नहीं था।
एक दिन तो उसने अति कर दिया महल को छोड़कर वह निचे के गांव में चली आई और रूप बदलकर छोटे-छोटे बच्चों के साथ खेलने लगी खेल-खेल में उसने अपने जादू से सभी बच्चों को खेलने का खिलौना बनाकर अपने साथ महल में लेकर चली आई, और कठपुतली की तरह उनके साथ खेलने लगी। शरारती परी उन्हें कभी पटक देती तो कभी उनकी टाँग खींच देती थी। जिससे उन बच्चों को बहुत दर्द होता था लेकिन जादू की वजह से उनकी आवाज भी नहीं निकल रही थी। इधर निचे गांव में कई बच्चों के गायब होने की वजह से पुरे गांव में रोने बिलखने की आवाजें आने लगी सभी अपने-अपने बच्चों को खोजने लगे। कोई जंगलो में खोजता, कोई झरने के आस-पास खोजता हैं तो पहाड़ों के गुफाओं में खोजने लगा। पूरा गांव बच्चों के लेकर बहुत चिंतित हो गया।
अंत में सब खोजते-खोजते थक गए और गांव के सबसे सिद्ध बाबा के पास रोते -रोते पहुँचे। बाबा उनके आने से पहले ही गांव पर आन-पड़ी समस्या के लिए ध्यान- मग्न थे।सभी ग्रामीण रोते-बिलखते बाबा के पास पहुँचे। बाबा जैसे उनका ही प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने उनके आते ही कहा हम सभी को चोटी में स्थित महल में जाना होगा। सभी ग्रामीण आश्चर्यचकित थे की चोटी इतनी बड़ी हैं साथ में इतनी कठिन चढ़ाई हैं आज तक कोई चढ़ पाया और बाबा वहाँ स्थित किसी महल की बात कर रहे हैं।
साधू बाबा ने अपने योगशक्ति से सबको दिव्यदृष्टि दीया और अपने साथ अंतर्ध्यान कर के सबको महल की तरफ लेकर निकल गए। रास्ते में ग्रामीणों ने देखा की जो झरना ऊपर वाले चोटी से गिरती थी उसके ऊपर एक महल हैं जिसको दिव्यदृष्टि प्राप्त होने के बाद दिखाई देने लगा था। साधू बाबू नियम के उल्घन से आहत थे इसीलिए बहुत दुखी थे उन्होंने राज दरबार में जा कर परियों की महारानी को बहुत कठोर भाषा में समझाया की यह जादुई शक्तियाँ ईश्वर ने आप सभी परियों को विश्व कल्याण करने के लिए दिया हैं सभी प्राणियों के रक्षा करने के लिए दिया गया हैं। आपकी पुत्री ने एक बार नहीं अनेक बार इस नियम को तोडा हैं और जबतक उसे वास्तव में अपनी गलतीयों का प्रायश्चित नहीं होता उसकी शक्तियाँ मैं उससे ले रहा हूँ। साधु बाबा ने आँख बंद कर अपने इष्टदेव को याद करके कुछ मंत्रो को बोला और देखते ही देखते राजकुमारी शीतल परी का जादुई छड़ी और उनके दोनों पंख विलुप्त हो गए।
अंत में सब खोजते-खोजते थक गए और गांव के सबसे सिद्ध बाबा के पास रोते -रोते पहुँचे। बाबा उनके आने से पहले ही गांव पर आन-पड़ी समस्या के लिए ध्यान- मग्न थे।सभी ग्रामीण रोते-बिलखते बाबा के पास पहुँचे। बाबा जैसे उनका ही प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने उनके आते ही कहा हम सभी को चोटी में स्थित महल में जाना होगा। सभी ग्रामीण आश्चर्यचकित थे की चोटी इतनी बड़ी हैं साथ में इतनी कठिन चढ़ाई हैं आज तक कोई चढ़ पाया और बाबा वहाँ स्थित किसी महल की बात कर रहे हैं।
साधू बाबा ने अपने योगशक्ति से सबको दिव्यदृष्टि दीया और अपने साथ अंतर्ध्यान कर के सबको महल की तरफ लेकर निकल गए। रास्ते में ग्रामीणों ने देखा की जो झरना ऊपर वाले चोटी से गिरती थी उसके ऊपर एक महल हैं जिसको दिव्यदृष्टि प्राप्त होने के बाद दिखाई देने लगा था। साधू बाबू नियम के उल्घन से आहत थे इसीलिए बहुत दुखी थे उन्होंने राज दरबार में जा कर परियों की महारानी को बहुत कठोर भाषा में समझाया की यह जादुई शक्तियाँ ईश्वर ने आप सभी परियों को विश्व कल्याण करने के लिए दिया हैं सभी प्राणियों के रक्षा करने के लिए दिया गया हैं। आपकी पुत्री ने एक बार नहीं अनेक बार इस नियम को तोडा हैं और जबतक उसे वास्तव में अपनी गलतीयों का प्रायश्चित नहीं होता उसकी शक्तियाँ मैं उससे ले रहा हूँ। साधु बाबा ने आँख बंद कर अपने इष्टदेव को याद करके कुछ मंत्रो को बोला और देखते ही देखते राजकुमारी शीतल परी का जादुई छड़ी और उनके दोनों पंख विलुप्त हो गए।
इस कहानी से हमें यही सीख मिलती हैं की हमें कभी भी अपनी शक्तियों का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए। हमें कभी घमंडी स्वाभाव का नहीं होना चाहिए। हमें हमेशा अपनी शक्तियों का प्रयोग सभी प्राणियों के सुख में करना चाहिए और हमे हमेशा सबकी मदद करनी चाहिए!