तीन बकरे और एक राकक्षस की कहानी

तीन बकरे और एक राकक्षस की कहानी

सालों पहले चंदेरी जंगल में तीन बकरे रहते थे। तीनों भाई थे, जो हमेशा मिलजुलकर घास खाते थे। एक बड़े से मैदान में वो रोज जाते और भरपेट खाकर खुशी-खुशी साथ रहते थे। धीरे-धीरे उस जगह की घास खत्म होने लगी, तो उनमें से सबसे बड़े बकरे ने कहा कि अब हमें यह जगह छोड़नी होगी। यहां खाने के लिए अब कुछ भी नहीं बचा है। तब सबसे छोटे बकरे ने कहा कि नदी के दूसरी ओर ऐसी जगह है, जहां चारों ओर घास ही घास है। अगर हम वहां चले जाएं, तो आराम से पूरी जिंदगी गुजार सकते हैं।

तभी बीच वाला बकरा बोला कि बात तो सही है, लेकिन हम नदी पार नहीं कर पाएंगे। नदी के बीच में बने पुल के नीचे एक राक्षस रहता है। वो वहां से गुजरने वाले हर किसी को खा जाता है। तब सबसे बड़े बकरे ने कहा कि मेरे पास एक तरकीब है, जिससे हम उस राक्षस को मार सकते हैं। उसने अपने दाेनों भाई के कान में कुछ कहा और सभी खुशी-खुशी नदी की ओर जाने लगे।

पुल के पास पहुंचते ही सभी बकरे एक पेड़ के पीछे छुप गए। तभी बड़े बकरे ने सबसे छोटे बकरे को इशारा करके पुल पार करने को कहा। जैसे ही वह छोटा बकरा पुल पार करने लगा, तो वहां राक्षस आ गया। राक्षस बोला, “तुम्हारी यहां आने की हिम्मत कैसे हुई? अब मैं तुमको खा जाऊंगा

तभी बकरा कहता है कि राक्षस महाराज, मैं तो बहुत छोटा हूं। मुझे खाने से आपका पेट भी नहीं भर पाएगा। आप एक काम कीजिए, पीछे मेरा बड़ा भाई आ रहा है। वो बहुत मोटा है आप उसको खाकर अपनी भूख मिटा लो। राक्षस को छोटे बकरे के मुंह से महाराज शब्द सुनकर अच्छा लगा। खुश होते हुए राक्षस ने कहा, “ठीक है तुम बहुत छोटे हो, मैं तुम्हारे बड़े भाई को खा लूंगा

छोटा बकरा वहां से चला गया। इसके बाद बड़े बकरे ने दूसरे बकरे को इशारा किया। फिर वो भी पेड़ के पीछे से निकल कर पुल पार करने लगा। वहां राक्षस पहले से ही उसका इंतजार कर रहा था। बकरे को देखकर राक्षस खुश हुआ और उससे कहा कि मैं तुमको खा जाऊंगा। तभी बकरे ने घबराकर कहा, “हे राजाधिराज, मुझे खाकर आपको क्या मिलेगा? मैं तो आपके नाश्ते के बाराबर भी नहीं हूं। आप थोड़ा और इंतजार करें, तो आपको ऐसी दावत मिलेगी कि आप कभी नहीं भूलेंगे।”

राक्षस ने उसकी बात सुनकर पूछा, कैसे? तब बकरे ने कहा कि पीछे से मेरा बड़ा भाई आ रहा है। वो मेरे जैसे दस बकरों के बराबर है। आप उसे कई दिनों तक आराम से खा सकते हैं। राक्षस ने उसके मुंह से राजाधिराज और मोटा बकरा खाने की बात सुनकर उसे पुल पार करने की इजाजत दे दी।

आखिर में सबसे बड़ा बकरा पुल के ऊपर चढ़ा और उसे पार करने लगा। तभी उसके सामने राक्षस आ गया और जोर-जोर से हंसने लगा। हंसने के बाद राक्षस ने कहा कि आज तो मजा ही आ गया। तुम बहुत मोटे हो, तुम्हें खाकर मैं अपनी भूख मिटाऊंगा।

राक्षस की बात सुनकर बकरा कुछ कदम पीछे गया और तेजी से दौड़ता हुआ राक्षस के सीने पर अपने सींग मार दिए। अचानक हुए वार से राक्षस संभल नहीं पाया और पानी में गिर गया। गिरते ही वह नदी के तेज बहाव में बहता हुआ दूर निकल गया। इसके बाद तीनों बकरे आराम से अपनी जिंदगी नई जगह में घास खाते हुए गुजारने लगे।

सीख: मुसीबत आने पर कभी डरना नहीं चाहिए और हिम्मत व सूझबूझ से काम करना चाहिए।

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