नौकरी का झांसा देकर भर्ती की, फिर साइबर ठगी की ट्रेनिंग देकर काम पर लगाया


मुंबई।
साइबर ठगी का एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। नौकरी के बहाने भर्ती कर फिर उन्हे साइबर ठगी की ट्रेनिक देकर काम पर लगाने वाले गिरोह का पर्दाफाश हुआ है। गैंग के सदस्य फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट बनाने के लिए कहा जाता था। उन्हें अमेरिकी, कनाडाई और यूरोपीय नागरिकों के नाम पर खाते बनाने के लिए भी कहा गया था। उनसे कहा जाता था कि वह इन विदेशी नागरिकों को कॉल करें, चैट करें और किसी भी कीमत पर उनसे दोस्ती करें। फिर इन विदेशी नागरिकों से फोन पर उनकी कंपनी का एप्लीकेशन डाउनलोड करके क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने के लिए कहने का दबाव डाला जाता था। सभी को इस तरह की ट्रेनिंग दी गई थी या दी जा रही थी कि सामने वाले को अपने अकाउंट में हमेशा रकम निवेश से दुगनी, तिगुनी दिखे, लेकिन वह कभी इसे निकाल नहीं सके। लेकिन जब तमाम लोग ऐसे काम को करने के लिए मना कर देते थे, तो उन्हें बुरी तरह प्रताड़ित किया जाता था। उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया था। वहां पीड़ितों से कहा जाता था कि हम लोगों ने आप लोगों पर बहुत रकम खर्च की है। आपको इसका पूरा पेमेंट करना पड़ेगा, तभी आपको वापस भेजा जाएगा। लेकिन फिर भी कुछ लोग साइबर सरगनाओं की गिरफ्त से बाहर आए और उन्होंने भारतीय दूतावास को ऑनलाइन शिकायत भेजी। इसी के बाद केंद्रीय जांच एजेंसियां सक्रिय हुईं। चूंकि दो आरोपियों का लिंक मुंबई से निकला, इसलिए मुंबई क्राइम ब्रांच ने उनकी लोकेशन ट्रेस की।

विदेश में नौकरी दिलाने के बहाने वहां लोगों से साइबर फ्रॉड करवाने के आरोप में मुंबई क्राइम ब्रांच ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है। गिरफ्तार आरोपी जेरी फिलिप्स जैकब और गॉडफ्री थॉमस अल्वारेस मुंबई में बोरिवली में रहते थे। डीसीपी विशाल ठाकुर के सुपरविजन में एसीपी महेश देसाई और सीनियर इंस्पेक्टर लक्ष्मीकांत सालुंखे की टीम ने एक ट्रैप के बाद इन दोनों आरोपियों को गिरफ्त में लिया। जांच में यह बात सामने आई कि दोनों आरोपी देश में अलग-अलग एजेंटों के संपर्क में थे। ऐसी आशंका है कि पूरे गिरोह ने पिछले कुछ महीनों में चार सौ से ज्यादा लोगों को नौकरी के बहाने विदेश में भेजा और उन्हें साइबर फ्रॉड करने के लिए मजबूर किया। एक अधिकारी के अनुसार अब तक 12 लोगों ने भारतीय दूतावास में शिकायत की है। उन शिकायतों के आधार पर ही मुंबई पुलिस ने एफआईआर दर्ज की।

गिरफ्तार आरोपियों जेरी फिलिप्स जैकब और गॉडफ्री थॉमस अल्वारेस के बारे में पता चला है कि इन्होंने खुद भी लाओस कॉल सेंटर में अतीत में काम किया है। बाद में इनके साथियों द्वारा इन्हें भारत से उन युवकों को वाया थाईलैंड यहां भेजने का जिम्मा सौंपा गया, जो फरॉटेदार अंग्रेजी बोल लेते हैं। मुंबई में गिरफ्तार दोनों आरोपी कई बार थाईलैंड में मुंबई और भारत के अन्य शहरों से गए युवाओं को रिसीव करने भी गए। कुछ सप्ताह पहले सीबीआई ने भी इसी तरह के एक केस की जांच शुरू की है, जिसमें नौकरी के बहाने रूस भेजे गए युवाओं के साथ धोखाधड़ी की गई थी। हैदराबाद के एक युवक व एक अन्य व्यक्ति की वहां मौत भी हो गई थी। हैदराबाद के शख्स को नौकरी के बहाने रूस बुलाया गया था और धोखे से रूस की प्राइवेट आर्मी में भर्ती कर लिया गया था। फिर उसे यूक्रेन के खिलाफ जंग लड़ने के लिए मजबूर किया गया। सीबीआई ने भी अपने केस में कई अलग-अलग एजेंटों के ठिकानों पर अलग-अलग शहरों में छापेमारी की थी। इनमें मुंबई भी था।

एक अधिकारी के अनुसार, गिरफ्तार आरोपी सोशल मीडिया पर विज्ञापन देते थे। विज्ञापन में उनका सिर्फ मोबाइल नंबर लिखा होता है। किसी ऑफिस का अड्रेस का इसमें उल्लेख नहीं होता था। तमाम लोग विज्ञापन के आधार पर इनसे संपर्क करते थे। यह लोग थाईलैंड में किसी कॉल सेंटर में जॉब का ऑफर देते थे। वर्क वीजा दिलाने का वादा करते थे, लेकिन अक्सर टूरिस्ट वीजा पर बैंकॉक के लिए भेजते थे। बैंकॉक एयरपोर्ट से इन लोगों को थाईलैंड में फिर एक दूसरे एयरपोर्ट चियांग राय के लिए भेजा जाता था। एयरपोर्ट से बाहर आने के बाद इन्हें टैक्सी में बैठाया जाता था। कहीं दूर ले जाया जाता था। वहां से नदी के जरिए या सड़क के रास्ते यह लोग लाओस शिफ्ट किये जाते थे। एक और देश में भी इन्हें ले जाये जाने की बात सामने आई है। क्राइम ब्रांच के एक अधिकारी के अनुसार, लाओस में अलग-अलग बिल्डिंगों में कॉल सेंटर बने हुए हैं, जिसके सरगना चीन के नागरिक हैं। इन कॉल सेंटरों में इनसे विदेशी नागरिकों के साथ साइबर ठगी और धोखाधड़ी करने के लिए कहा जाता था।

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