18 साल बाद महिला चिकित्सा अधिकारी को मिला पेंशन का हक
भोपाल के रचना नगर निवासी डॉ. गीतांजलि ने 2006 में याचिका दायर की थी। याचिका में बताया गया था कि वह राज्य बीमा सेवा में चिकित्सा अधिकारी के रूप में अगस्त 1989 में नियुक्त हुई थीं। उन्होंने 15 साल की सेवा पूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए 10 मार्च 2006 को आवेदन करते हुए अपना त्यागपत्र दिया था। जवाब न मिलने पर उन्होंने 1 मई 2006 को पुन: विभाग को सूचित किया था। याचिकाकर्ता ने पेंशन नियम 42 के तहत 15 साल की सेवा अनिवार्य होने का हवाला दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि निर्धारित अवधि पूरी करने के बावजूद उन्हें पेंशन का लाभ नहीं दिया जा रहा था। राज्य सरकार ने जवाब में बताया कि प्रदेश सरकार द्वारा सिविल सेवा संशोधित पेंशन नियम का गजट नोटिफिकेशन सात अप्रैल 2006 को प्रकाशित किया गया था। इसके अनुसार पेंशन के लिए 20 साल की सेवा अनिवार्य है। याचिकाकर्ता का आवेदन उस समय स्वीकार किया गया जब नया संशोधित नियम प्रभावी था, इसलिए वह पेंशन की हकदार नहीं थीं।हाईकोर्ट ने लगाई फटकार
एकल पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए अपने निर्णय में कहा कि राज्य सरकार की कार्यवाही मनमानी नहीं बल्कि निष्पक्ष होनी चाहिए। याचिकाकर्ता ने जिस दिन आवेदन और त्यागपत्र दिया, उस दिन पूर्वव्यापी कानून प्रभावी था। एकल पीठ ने याचिका का निराकरण करते हुए महिला चिकित्सा अधिकारी को पेंशन राशि सहित अन्य लाभ प्रदान करने के आदेश जारी किए। राशि का भुगतान आठ प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ करने के निर्देश दिए।
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