
खुशी टाइम्स\बिहार। बिहार के पूर्णिया में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। मामला पूर्णिया जिले के बिकौठी थाने का है यहां एक दरोगा ने एक मुकदमे में आरोपी को घर से उठाया और थाने ले जाते समय बीच रास्ते में गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। बाद में मामले को एनकाउंटर बता दिया। इस मामले में आरोपी दरोगा के खिलाफ उसी के थाने में मुकदमा भी दर्ज हुआ था। बावजूद इसके, आरोपी दरोगा ने इस मुकदमे का विवरण अपने सर्विस रिकार्ड में नहीं चढ़ने दिया।
घटना की जानकारी विस्तार से
बिहार के पूर्णिया में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। मामला पूर्णिया जिले के बिकौठी थाने का है यहां एक दरोगा ने एक मुकदमे में आरोपी को घर से उठाया और थाने ले जाते समय बीच रास्ते में गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। बाद में मामले को एनकाउंटर बता दिया। इस मामले में आरोपी दरोगा के खिलाफ उसी के थाने में मुकदमा भी दर्ज हुआ था। बावजूद इसके, आरोपी दरोगा ने इस मुकदमे का विवरण अपने सर्विस रिकार्ड में नहीं चढ़ने दिया।26 साल तक यह दरोगा अपनी नौकरी और प्रमोशन का लाभ लेता रहा। सीबीआई अदालत ने पिछले साल अक्टूबर महीने में उसे फर्जी एनकाउंटर केस में दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सजा के वक्त आरोपी दरोगा प्रमोशन पाकर पहले इंस्पेक्टर और फिर डिप्टी एसपी बन गया और उसकी तैनाती दरभंगा में स्पेशल ब्रांच के डीएसपी के रूप में हो गई। हालांकि कोर्ट में सजा के ऐलान के बाद उसे अरेस्ट कर जेल तो भेज दिया गया, लेकिन फिर नया मामला यह सामने आ गया कि आखिर कैसे आरोपी दरोगा ने इस मुकदमे का विवरण 26 साल तक अपने सर्विस रिकार्ड में नहीं चढ़ने दिया।
अब जब उसे कोर्ट ने इसी मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई है।आरोपी दरोगा को सजा मिलते ही इस मामले में अंधेरे में रहे आला अधिकारियों की आंख खुल गई है।यह सवाल इसलिए भी गंभीर हो गया है कि आरोपी के खिलाफ दर्ज मुकदमे की जांच सीबीआई ने की है आरोपी दरोगा मुखलाल पासवान 26 साल पहले इस थाने का थानाध्यक्ष था। बिहार पुलिस के आला अधिकारी अब उन चेहरों की भी तलाश में जुटे हैं, जिन्होंने ऐसा करने में दरोगा मुखलाल की मदद की। अब बिहार पुलिस हेडक्वार्टर से मामले की जांच पूर्णिया रेंज के डीआईजी प्रमोद कुमार मंडल को सौंपा गया है। दरअसल, बिहार पुलिस सेवा की नियमावली के मुताबिक किसी भी पुलिसकर्मी के खिलाफ किसी तरह का मुकदमा दर्ज होता है तो इसका विवरण उसके सर्विस रिकार्ड में चढ़ाया जाता है। इस प्रकार मुकदमे का निर्णय होने तक आरोपी पुलिसकर्मी को प्रमोशन का लाभ नहीं मिलता।
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